Monday, July 27, 2009

बेरहम सरकार, जंगली विपक्ष

सलीके से सिर ढंकने वाली महबूबा मुफ्ती को संसदीय सलीका नहीं आता। अगर आता तो जम्मू कश्मीर विधानसभा में सोमवार को जो कुछ हुआ, वह नहीं होता। महबूबा इस कदर आपा नहीं खोतीं कि स्पीकर की गरिमा का भी उन्हें खयाल नहीं रहता। वह युवा हैं लेकिन घाटी की एक वरिष्ठ नेता हैं। उनका व्यवहार उनकी पार्टी और प्रदेश की संसदीय राजनीति के लिए एक अनुकरण होना चाहिए, ना कि ऐसा जिसे देखकर किसी भी संजीदा व्यक्ति का मस्तक शर्म से झुक जाए। स्पीकर का माइक खींचना विरोध प्रदर्शन का सौम्य तरीका नहीं हो सकता, जबकि संसदीय परंपरा तो बहुत हद तक मर्यादा और लोक-लाज की पगडंडी से होकर ही गुजरती है। महबूबा के किए पर खिन्न होने का ये कतई मतलब नहीं है कि जम्मू कश्मीर की सरकार जो कुछ शोपियां बलात्कार और हत्या मामले में कर रही है, उसे सही ठहराया जा सकता है। जैसे जैसे 15 अगस्त 1947 से .... READ MORE