Monday, July 27, 2009

लूटपाट, क़त्ल और व्यभिचार के लिए एकजुट हों !

"सच का सामना" के बचाव में कई महारथी मैदान में उतर आए हैं। वीर सांघवी का कहना है कि अगर आपको रिएल्टी टीवी पसंद नहीं तो अपना मत रिमोट से जाहिर कीजिए। चैनल बदल दीजिए। वो भी ऐसा करते हैं इसलिए भारत के तमाम दर्शकों से उनकी अपील है कि वो भी ऐसा ही करें। वीर सांघवी के मुताबिक सच का सामना या फिर ऐसे किसी भी कार्यक्रम को बंद करना सेंसरशिप को बढ़ावा देना है। वो ऐसी किसी भी सेंसरशिप के पक्ष में नहीं।
मीडिया से जुड़ी चर्चित वेबसाइट "एक्सचेंज फॉर मीडिया" पर एक लेख छपा। चार दिन पहले। कोई प्रद्युमन महेश्वरी हैं। मीडिया के बड़े जानकार मालूम होते हैं। उन्होंने सरकार से कहा है कि वो टीवी चैनलों को उनके हाल पर छोड़ दें। वो "सच का सामना" के समर्थन में यहां तक कह देते हैं कि नेताओं की कई हरकतें ऐसी होती हैं जिनसे बच्चों पर बुरा असर पड़ता है। तो क्या उन पर भी पाबंदी लगा दी जाए। यह भी कहते हैं कि सभी चैनलों को इस कार्यक्रम के समर्थन में एकजुट हो जाना चाहिए।

अब आप समझ सकते हैं कि "सच का सामना" के समर्थन में कितने बड़े-बड़े लोग मैदान में उतर आए हैं। इस बीच एक ख़बर यह भी है स्टार प्लस ने इस शो को बचाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। इसके समर्थन में पूरी फौज खड़ी की जा रही है। नए-नए तर्क गढ़े जा रहे हैं। अभिव्यक्ति की आज़ादी और क्रिएटिविटी को सबसे मजबूत ढाल के तौर पर पेश किया जा रहा है। कहा जा रहा है कि अगर "सच का सामना" रोका गया तो ये रचनात्मकता और अभिव्यक्ति की आज़ादी की हत्या होगी। बचाव की इन दलीलों में कितना दम है इस पर हम विस्तार से चर्चा करेंगे। शुरुआत करते हैं कि आखिर सच का सामना में रचनात्मकता कितनी है और कितनी नहीं? .......... READ MORE