Sunday, August 16, 2009

यहां "शहाबुद्दीन”, “बजाज” और “ये पत्रकार” एक जैसे हैं!

राज्य (राज) सभा में जाने लायक जितने भी नाम आपने गिनाए हैं, वे सभी शायद एक “मनोनीत” पद के लिए हैं। विडंबना यह है कि इन सबके अलावा भी जो संभावित नाम हो सकते हैं, उनमें से कोई ऐसा नहीं, जो बिना सर्वश्रेष्ठ “भक्ति” साबित किए “राष्ट्रपति” की कृपा पा सकने में सक्षम हों। अपनी क्षमता भर सबने ऐसा किया ही है, या कर रहे हैं। हां, रूप-स्वरूप अलग-अलग हो सकते हैं। लेकिन “यह किए जाने” को हम इस तर्क से जस्टीफाई कर सकते हैं कि अगर हमारे “लोकतंत्र” के साठ से ज्यादा सालों का हासिल यही है कि देश के सबसे “पाक-साफ मंदिर” में जगह पाना है तो तमाम धतकर्मों में अपनी कुशलता दर्शानी होगी, तो वहां जाने की इच्छा रखने वालों का क्या गुनाह...!

रुकिए नहीं। लेकिन रुक कर थोड़ा देखना होगा। क्या आप शहाबुद्दीन, सूरजभान, राजा भैया, पप्पू यादव जैसे तमाम नामों के संसद या विधानसभाओं में पहुंचने से परेशान होते हैं? बंदूक की बदौलत अपनी सियासी हैसियत कायम करने वालों से निश्चित तौर पर हमारी पवित्र प्रतिनिधि संस्थाओं की पवित्रता भंग होती है। बंदूक की बुनियाद पर पले-बढ़े लोगों द्वारा इसका इस्तेमाल करके संसद या विधानसभाओं में पहुंचने पर हमें बहुत दुख होता है, लेकिन आश्चर्य... ((READ MORE))