Sunday, August 2, 2009

"नाराज़गी इसलिए तो नहीं कि लेखक "अनवर" है"

अनवर जमाल अशरफ़ के लेख के बाद "सच का सामना" पर होने वाली बहस ने नया मोड़ ले लिया है। समरेंद्र के दोनों लेख - लूटपाट, क़त्ल और व्यभिचार के लिए एकजुट हों और सबसे पहले तो बंद करो “सच का सामना” में संस्कृति की बात कहीं नहीं थी। लेकिन अनवर के लेख के बाद अब सारा ध्यान भारतीय संस्कृति पर केंद्रित हो गया है। हालांकि अनवर ने भाड़ शब्द का इस्तेमाल एक मुहावरे के तौर पर किया है, लेकिन विरोध करने वालों को सबसे ज़्यादा एतराज इसी बात का है कि लेखक ने भारत की महान संस्कृति को भाड़ में क्यों झोंक दिया? इससे लगता है कि क्यों नहीं जनतंत्र पर एक बहस भारतीय संस्कृति पर भी हो जाए। जो भी इस महान संस्कृति पर अपनी बात रखना चाहते हैं वो खुल कर कहें। हम उनकी राय को सम्मान पूर्वक जगह देंगे। इसकी शुरुआत करते हैं अनवर के लेख पर आई कुछ जोरदार टिप्पणियों से। आप इन्हें पढ़ें और सहमति-असहमति दर्ज कराएं। .... ((READ MORE))