Wednesday, December 23, 2009

राठौर आदरणीय क्यों? मीडिया के भाषाई संस्कार पर सवाल


  • दिलीप मंडल
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रुचिका के साथ छेड़खानी और उसकी आत्महत्या के मामले में भारतीय न्यायव्यवस्था ने कुछ नया या अजूबा नहीं किया है। न्यायप्रक्रिया में धन और रुतबे के महत्व के बारे में ये केस कोई नई बात नहीं कहता। देश के राष्ट्रपति रहे के आर नारायणन ने जब ये कहा था कि आजादी के बाद जिन लोगों को फांसी की सजा हुई है उनमें से कोई भी अमीर नहीं था, तो वो इसी सच को उद्धाटित कर रहे थे। हरियाणा के पूर्व पुलिस महानिदेशक एस.पी.एस. राठौर के साथ जो होने वाला है उसका अंदाजा हम इस मुकदमे की सुस्त रफ्तार से लगा सकते हैं। 19 साल में ये केस स्थानीय न्यायालय की सीमा को ही पार कर पाया है। इस रफ्तार से केस चला तो राठौर को जीवन का एक भी दिन शायद ही जेल में काटना होगा। ... Read More