आमिर अजमल कसाब,
तुम 26 नवंबर 2008 को फक्र से याद करोगे। हमारे दिलो-दिमाग में भी वो दिन हमेशा हमेशा के लिये चस्पा हो चुका है। वो वहशी तीन दिन जब तुमने और तुम्हारे नौ साथियों ने मिलकर मुंबई में खूनी खेल खेला था। लेकिन एक और दिन मेरे जहन की गहराइयों में उतर चुका है - 23 फरवरी 2009। उस दिन सारा हिंदुस्तान टकटकी लगाये अपने अपने घरों में टीवी देख रहा था। अमरीका के सबसे रंगीन शहर लॉस एंजीलीस में ऑस्कर अवार्ड दिये जा रहे थे। दुनिया भर में संगीत से जुड़े कलाकारों को उनके उम्दा काम के लिये नवाजा जा रहा था। उम्मीद से लब्रेज़ दो हिन्दुस्तानी कलाकार भी उस जलसे में शामिल थे। मैं तुम्हें उनसे मिलवाता हूं। तुम्हारी ही तरह दोनों इस्लाम धर्म को मानने वाले। एक का नाम है - अल्लाह रख्खा रहमान। और दूसरे का रेसूल पुकुट्टी।
रहमान और रेसूल को उस दिन ऑस्कर मिला। क्या हिंदू, क्या मुसलमान, ईसाई, सिख, जैन, बौद्ध - फक्र से 120 करोड़ हिंदुस्तानियों का सीना चौड़ा हो गया। हिन्दुस्तान में टूरिस्ट की तरह आते तो देखते इन सभी धर्मों को मानने वालों का जलवा लेकिन तुम तो मियां शैतानी दिमाग के आदमी निकले...तुम तो एके 56 ..... (read more)