Saturday, July 25, 2009

सबसे पहले तो बंद करो “सच का सामना”

“सच का सामना” बंद होना चाहिए या नहीं - इस पर बहस तेज़ हो रही है। वैसे ऐसे कार्यक्रमों में कोई बुराई नहीं। लेकिन क्या सच में हमारा समाज ऐसे किसी भी सच का सामना करने के लिए तैयार है? शुरुआती कुछ खुलासों से ऐसा नहीं लगता। आप सचिन तेंदुलकर और विनोद कांबली को ही लीजिए। विनोद कांबली ने इस कार्यक्रम के दौरान कह दिया कि सचिन ने उनकी उतनी मदद नहीं की। चाहते तो कर सकते थे। लेकिन नहीं की। बाद में इसका खंडन किया। लगभग गिड़गिड़ाने वाले अंदाज में कहा कि उनकी मंशा ऐसा नहीं थी। लेकिन लोग कांबली की सफ़ाई कबूल करें भी तो कैसे? उन्होंने टीवी पर कांबली को खुद इस सच से पर्दा उठाते देखा। सचिन से रिश्तों में दूरी बढ़ गई। दोनों दोस्त अब दूर हो गए।

यह बात उस दोस्ती की है जिसकी लोग मिसाल दिया करते थे। खेल की दुनिया में लोग उनकी दोस्ती की कसम खाते थे। दोनों को करीब से जानने वाले बताते हैं कि इस घटना ने इतनी दरार पैदा कर दी जिसे भविष्य में पाटना बहुत मुश्किल होगा।


बहुत से लोग.... READ MORE