Wednesday, July 29, 2009

पान खाओ, नशा करो... खरीद कर पढ़ना मत

एक जमाना था कि खद्दर के झोले में लोग धर्मयुग रखकर बड़े गुमान से चलते थे। लोगों को वह पत्रिका कुछ वैसे ही धर्म (यहां धर्म का मतलब कर्तव्य है) का भान कराती थी, जैसे जामवंत जब तब हनुमान को उनकी शक्ति की याद दिलाते थे। उस पत्रिका को लोग समाज और उसका मानस बदलने का एक सशक्त जरिया मानते थे। अब समाज बदला या नहीं बदला लेकिन धर्मयुग नहीं रहा। आखिर बाजार के युग में धर्म कहां टिकता है? धर्मयुग नही टिकी। धर्मयुग ही क्यों, दिनमान, माया, रविवार जैसी पत्रिकाएं .... READ MORE