गुजरात विधानसभा में नगरपालिका चुनावों में कम्पल्सरी (अनिवार्य) वोटिंग का बिल ध्वनिमत से पास हुआ। वोटिंग होती भी तो सदन में ये बिल पास कराना सरकार के लिए मुश्किल नहीं था। लेकिन सवाल ये है कि आखिर कम्पल्सरी वोटिंग से क्या हासिल करना चाहती है मोदी सरकार? क्या दूसरी राज्य सरकारें या केन्द्र भी इस तरह का कानून लाएगा इस पर बहस छिड़ गयी है।
ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर और स्विट्जरलैंट जैसे देशों में अनिवार्य वोटिंग का कानून है। ऑस्ट्रेलिया में ये लगभग सौ साल पुराना कानून है जिसकी कहानी भी दिलचस्प है। पहली बार ऑस्ट्रेलिया में ये कानून 1914 में बना जब लिबरल पार्टी की सरकार थी। और ये कानून इसलिए बना क्योंकि उस साल क्वीन्सलैंड राज्य में चुनाव का वोट प्रतिशत 75 फीसदी था। और अगले साल यानि 1915 में देश में चुनाव होने वाले थे। लिबरल पार्टी को ये डर था कहीं लेबर पार्टी बाजी न मार ले जाए क्योंकि लेबर पार्टी के वोटर ज्यादा संगठित थे। इस कारण लिबरल पार्टी ने ये कानून बनाया मगर अगले साल के चुनाव में वो लेबर पार्टी से हार ही गयी। कहीं ऐसा तो नहीं कि लोक सभा में हार झेलने के बाद गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को अब बीजेपी के शहरी वोटर के दरकने का ख़तरा नज़र आ.... ((Read More))