Tuesday, August 4, 2009

संस्कृति के रक्षकों कहो- किसकी रोटी में किसका लहू है?

भारतीय संस्कृति अक्सर खतरे में पड़ जाती है। और फिर उसे बचाने के लिए बहुत से लोग कमर कसने लगते हैं। लेकिन संस्कृति है कि फिर से खतरे में पड़ जाती है....अपनी इस महान संस्कृति को कभी सविता भाभी खतरे में डाल देती हैं, तो कभी सच का सामना इसे तार-तार करने पर उतारू हो जाता है। कभी सहमत की प्रदर्शनी इसकी दुश्मन बन जाती है, तो कभी मक़बूल फ़िदा हुसैन की पेंटिंग इस पर कालिख पोतने लगती है। भारतीय संस्कृति के रक्षकों को बड़ा गुस्सा आता है। वो सबकुछ बर्दाश्त कर सकते हैं, लेकिन संस्कृति पर हमला? इसे तो हरगिज़ बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। सबका गुस्सा देख कई बार मुझे भी लगता है, इतने समझदार लोग गुस्सा कर रहे हैं, ज़रूर कोई वाज़िब बात होगी। आखिर हम भारतवासी हैं, भारतीय संस्कृति पर हमला कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं? सोचता हूं मुझे भी संस्कृति की रक्षा में जुटे लोगों का साथ देना चाहिए।

भारतीय संस्कृति की रक्षा का फैसला कर तो लिया, लेकिन इस पर अमल कैसे करूं समझ नहीं आ रहा। आखिर जिसकी रक्षा करनी है, उसका अता-पता, उसकी पहचान तो मालूम होनी चाहिए। दिक्कत यहीं है। मैं समझ ही नहीं पा रहा हूं कि आखिर ये भारतीय संस्कृति है क्या चीज़? एक बार संघ प्रशिक्षित एक वीएचपी नेता ने मुझे समझाया था कि हिंदू - मुसलमान एक मुल्क में एक साथ क्यों नहीं रह सकते। उनकी दलील थी - दोनों की संस्कृति अलग है। हिंदू पूरब की ओर मुंह करके पूजा करता है, मुसलमान पश्चिम की ओर मुंह करके। हिंदू हाथ धोते हुए कोहनी से हथेली की ओर पानी डालता है, मुसलमान वज़ू करते हुए पहले हथेली में पानी लेता है, फिर कोहनी तक ले जाता है। हिंदू का तवा बीच में गहरा होता है, मुसलमान का बीच में उठा हुआ होता है...कितनी अलग है दोनों की संस्कृति...कैसे रह सकते हैं साथ-साथ? आशय ये था कि हिंदू-मुसलमान की राष्ट्रीयता .... (( READ MORE))