क्या किसी पत्रकार के लिए राज्यसभा में मनोनीत होना इतनी बड़ी कामयाबी हो सकती है कि उसके आगे ज़िंदगी के सभी काम बौने नज़र आने लगें? अगर ऐसा है तब तो सभी पत्रकारों का सिर्फ़ एक ही ध्येय होना चाहिए कि वो जनहित में नहीं बल्कि राज्यसभा में चुने जाने की शर्तों के आधार पर पत्रकारिता करें। लेकिन हमने और आपने ऐसे कई पत्रकारों को देखा है जिन्होंने पूरी ज़िंदगी कलम का मान रखा। सत्ता के सामने समर्पण की जगह सत्ता के ख़िलाफ़ संघर्ष किया। जनहित की पत्रकारिता के लिए बहुत कुछ भोगा और सहा। लेकिन चंदन मित्रा जैसे कुछ पत्रकार हैं जिनके लिए राज्यसभा में मनोनीत होना उनकी ज़िंदगी की सबसे बड़ी उपलब्धि है। चंदन मित्रा ने राज्यसभा से रिटायर होने के बाद द पायनियर में अपनी बात रखी है। वो राज्यसभा से रिटायर होने पर बहुत दुखी हैं। चंदन मित्रा कहते हैं कि अब उनके पास छह साल का अनुभव है और वो बेहतर तरीके से संसदीय व्यवस्था में योगदान कर सकते हैं। लेकिन अब वो राज्यसभा में नहीं हैं।
यही नहीं चंदन मित्रा संसदीय कामकाज की एक झलक भी पेश करते हैं। चंदन कहते हैं कि वो अपनी ज़िंदगी में एक रात भी किसी गांव में नहीं ठहरे हैं। लेकिन वो एक ऐसी स्थाई समिति का हिस्सा रहे जिसने नरेगा की समीक्षा की। आगे बढ़ने से पहले चंदन मित्रा के उस संस्मरण के कुछ हिस्से आप भी पढ़िए। ... READ MORE