रविवार डॉट कॉम पर छपे प्रभाष जोशी के इंटरव्यू ने एक झटके में वह सब सामने ला दिया है जो अब तक पर्दे की ओट में था। एक गांधीवादी, अहिंसावादी, सेक्यूलर और जनपक्षीय संपादक-पत्रकार का यह असली सच जितना चौंकाता है, इससे कहीं अधिक आक्रोश पैदा करता है। लोकतांत्रिक मूल्यों की बात करने वाले इस वरिष्ठ पत्रकार-लेखक ने इस इंटरव्यू में परंपरा, ट्रेनिंग और कौशल के बहाने न केवल लोकतंत्र की आत्मा को घायल किया है, बल्कि उन लोगों को भी अपमानित किया है, जिनकी सामाजिक पृष्ठभूमि प्रभु वर्ग की नहीं है।
अपने साक्षात्कार में जोशी जी ने कहा है "विनोद कांबली का एटीट्यूड बना कर रखने और लेकर जाने का नहीं है। कुछ कर दिखाने का है।" अब जोशी जी को क्या यह बताना पड़ेगा कि कांबली जिस सामाजिक पृष्ठभूमि से आते हैं, वहां सम्मान के साथ जीने की एकमात्र शर्त है- कुछ कर दिखाने का जज्बा। कभी-कभी तो कुछ कर दिखाने का जज्बा भी उनके जी का जंजाल बन जाता है। यकीन न आए तो खैरलांजी की घटनाओं को फिर से याद कर लीजिए। तस्वीर साफ हो जाएगी।... (READ MORE)