क्या किसी पत्रकार को ये हक़ है कि वो निजी खुन्नस निकालने में अपने संस्थान का इस्तेमाल करे? इस सवाल का सीधा जवाब है - नहीं। किसी भी पत्रकार को ऐसा नहीं करना चाहिए और ना ही उसे ये हक़ दिया जाना चाहिए। इसी सिलसिले में दिल्ली के एक मीडिया संस्थान का एक वाकया ध्यान आ रहा है। वहां के एक कर्मचारी ने किसी इंस्टीट्यूट को डराने के लिए संस्थान का बेजा इस्तेमाल कर दिया था। इंस्टीट्यूट की तरफ से शिकायत मिलने पर उस कर्मचारी को नौकरी छोड़नी पड़ी। लेकिन आप हर कंपनी से ऐसी आचार संहिता की उम्मीद नहीं कर सकते। खासकर जब वो कंपनी अपने कर्मचारियों का इस्तेमाल अनैतिक तरीके से धन जुटाने में करती हो।
तीस जुलाई को पटना के दैनिक जागरण में एक तस्वीर छपी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और जॉर्ज फर्नांडिस की। जॉर्ज राज्यसभा का पर्चा भरने के लिए पटना पहुंचे हुए थे। ये तस्वीर मोर्या होटल में खींची गई थी। जॉर्ज और नीतीश के पीछे पटना के ही एक वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश कुमार मौजूद थे। बताया जाता है कि प्रकाश कुमार और दैनिक जागरण के स्थानीय संपादक शैलेंद्र दीक्षित से रिश्ते ठीक नहीं हैं। दोनों में झगड़ा है। झगड़ा की जगह खुन्नस शब्द ज़्यादा बेहतर रहेगा। दोस्ती की तरह खुन्नस भी निजी होती है। बेहद निजी। लेकिन दैनिक जागरण के संपादक ने निजी खुन्नस बेहद ओछे तरीके से सार्वजनिक.... ((READ MORE))