अगर एक अखबार किसी भी सरकारी नीति के खिलाफ आयोजित विरोध प्रदर्शन के प्रति इस हद तक आक्रामक हो जाए कि समाज से इसके विरुद्ध खड़ा होने का आह्वान करने लगे, तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि उसके इस पक्ष के निहितार्थ क्या होंगे और एक अखबार जब खुलेआम एक पक्ष बन जाता है तो कितना बुरा हो सकता है। राजू रंजन जी ने अपने लेख में इस मसले पर काफी कुछ कह दिया है और वे ठीक कहते हैं कि दूसरों की अयोग्यता पर अंगुली उठाने वालों को पहले अपने गिरेबान में झांकना चाहिए।
उम्मीद की जानी चाहिए कि अपनी मांगों के लेकर नवनियुक्त शिक्षा मित्रों के आंदोलन के प्रति अपने घृणा-प्रदर्शन के बाद ‘प्रभात खबर’ को इस बात का अहसास हो कि उसने क्या किया है। ‘हे ईश्वर, इन्हें माफ करना, ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं’- जैसा जुमला उछालने के तत्काल बाद इस अखबार में ‘दर्शक’ के नाम से प्रकाशित लंबे लेख में कहा जाता है कि इन शिक्षा मित्रों को नहीं पता कि बिहार का भविष्य इन्हें कभी माफ नहीं करेगा। जैसे कि ये बिहार के भविष्य के नियंता हों और... ((READ MORE))