Sunday, June 7, 2009

यह नई पत्रकारिता है जी

((वर्तमान में मीडिया के दो चेहरे हैं। मुखौटा हटाने पर नज़र आने वाला असली चेहरा इतना विकृत है कि सिर शर्म से झुक जाता है। इस चुनाव में मीडिया ने ख़ासकर दैनिक जागरण जैसे कुछ संस्थानों ने दलाली का एक नया इतिहास रचा है। लोकतंत्र का सौदा कर उन्होंने अपने कर्म और धर्म दोनों से किनारा कर लिया और पाठकों को धोखा दिया है। इस पर भी उनकी बेशर्मी का आलम ये है कि वो खुलेआम जनता के साथ होने का दंभ भर रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार प्रभाष जोशी ने इस हफ़्ते जनसत्ता में उनकी इसी बेशर्मी को सामने रखा है। साथ ही सूचना के अधिकार की वकालत करने वाले अरविंद केजरीवाल और अरुणा राय से पूछा है कि आखिर किस सिद्धांत के तहत वो ऐसे अख़बारों के साथ खड़े हैं जिन्होंने सूचना के अधिकार को ताक पर रख दिया। ये विरोधाभाष क्यों? ये साठगांठ क्यों?))
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वे जब सूचना के जन अधिकार अभियान के कार्यकर्ता हुआ करते थे तो अरविंद केजरीवाल से मिलना जुलना होता था। फिर जब सूचना के अधिकार का कानून बन गया तो केजरीवाल ने दिल्ली जैसे महानगर में काम करने के लिए “परिवर्तन” नाम की संस्था बनाई। गांवों में काम करने वाले लोगों से सीधे मिलने और बात की बात से प्रचार करके काम चला सकते हैं। महानगर में मीडिया की सहायता के बिना लोगों तक पहुंचा नहीं जा सकता। केजरीवाल ने इसलिए दिल्ली के मीडिया से संबंध बनाए और उससे मिले सहयोग के कारण उनके काम का असर भी हुआ। भले लोगों की सिफारिश पर उन्हें मेग्सेसे भी मिल गया। अब वे सूचना के अधिकार आंदोलन के नेता हो गये। अब वे पब्लिक कॉज रिसर्च फाउंडेशन के जरिये सूचना के अधिकार को बढ़ाने वाले लोगों को राष्ट्रीय पुरस्कार देने वाले हैं।

अच्छा है। लेकिन इससे अपने को उत्तेजित होने की जरूरत नहीं थी। यह कागद कारे इसलिए लिख रहा हूं कि अरविंद केजरीवाल ने यह पुरस्कार तय करने के लिए जो समिति बनाई है, उसमें ऐसे अखबार और उसके मालिक संपादक को भी रखा है, जिसने इस लोकसभा चुनाव में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार किया। भ्रष्टाचार तो हिंदी इलाके के और भी बल्कि देश भर के अखबारों ने किया। पैसे लेकर उम्मीदवारों के प्रचार को खबर बनाकर छापा और पाठकों को बताया तक नहीं कि ये खबरें उनकी नहीं, उम्मीदवार के प्रचार के विज्ञापन हैं। उम्मीदवारों को अपना खर्च सीमा में रखने और काले पैसे से मनचाहा प्रचार पाने की सुविधा हुई। चुनाव कवरेज के लिए हिंदी इलाके में घूमने वाले समझदार और जानकार पत्रकारों का अंदाज है कि उत्तर प्रदेश के इस अखबार ने इस चुनाव में कोई दो सौ करोड़ रुपये का काला धन बनाया है। ....... ((READ MORE))....