Wednesday, June 10, 2009

हिंदुस्तान, मृणाल पांडे और उनका बड़ा दिल

हिंदुस्तान ने ब्रिलियंट ट्यूटोरियल्स के साथ मिल कर “हिंदुस्तान कोचिंग स्कॉलरशिप” शुरू की है। अख़बार के मुताबिक ये स्कीम ऐसे गरीब बच्चों के लिए हैं जो मेधावी हैं, मगर पैसे की कमी के कारण कोचिंग सेंटरों में दाखिला नहीं ले पाते और डॉक्टर और इंजीनियर बनने से चूक जाते हैं। अख़बार की संपादक मृणाल पांडे पहले पन्ने पर देश की जनता से सवाल पूछती हैं – “तब क्या गरीबों के मेधावी बच्चों के सपने यूं ही बिखरते रहें?” फिर खुद ही उसका जवाब देती हैं – “नहीं।” वो आगे लिखती हैं - “हिंदुस्तान का मानना है कि ऐसे गरीब किंतु मेधावी बच्चों के सपनों का साकार कराने के लिए ठोस मदद देना हम सबका फर्ज है। इसलिए ब्रिलियंट ट्यूटोरियल्स के साथ हम इस वर्ष से एक नन्हा दीया इन सपनों की देहरी पर जला रहे हैं।”

सपनों की देहरी पर नन्हा दीया - जुमलेबाजी अच्छी है। लेकिन इस जुमलेबाजी में कई पेंच हैं। यहां सबसे बड़ा और पहला सवाल तो यही है कि अख़बारों का पहला दायित्व क्या है? नीतियों पर सवाल उठाना या फिर प्रचार के लिए पाठकों को इमोशनली ब्लैकमेल करना? ये सवाल बड़ा है और फिहलाल हम इस पर चर्चा रहने देते हैं। अभी बात हिंदुस्तान की जुमलेबाजी में छिपे उन खास बिंदुओं पर जो उसकी इस पूरी मुहिम को सरोकार कम, एक ओछे दर्जे का विज्ञापन ज़्यादा साबित करते हैं?

((READ MORE))