दिल्ली सरकार ने चुनाव पूर्व मीडिया के लिए खजाना खोल दिया था। दस साल में विज्ञापन राशि तीस गुना से ज्यादा बढ़ गई है। चार साल में गैर-समाचार पत्र प्रचार माध्यमों में विज्ञापन के मद में खर्च सौ गुना से ज्यादा बढ़ गया है। केन्द्र सरकार ने भी चुनाव के पहले के महीनों में मीडिया के लिए खजाना लूटाया था। शीला दीक्षित और मनमोहन सिंह की इस दरियादिली पर से अब पर्दा उठ रहा है। और ये पर्दा उठा रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार अनिल चमड़िया। आप उनके इस शानदार विश्लेषण को पढ़िये और अंदाजा लगाइये कि क्यों यूपीए सरकार की ग़लत नीतियों के ख़िलाफ़ मीडिया की आवाज़ धीमी पड़ गई है?... क्यों मंत्रियों की अय्याशी पर मीडिया ख़ामोश है? और क्यों बीते कई साल से किसी बड़े घोटाले का पर्दाफाश नहीं हुआ है? सोचिए कि क्या हमारे देश के सारे अधिकारी और सारे नेता ईमानदार हो गए हैं? या कहीं ऐसा तो नहीं कि दलाल दलाली छोड़ कर भजन-कीर्तन में जुट गए हैं? सोचिए और खुल कर अपनी प्रतिक्रिया दीजिये।
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