दस दिन तक केंद्रीय गृह मंत्री पी चिदंबरम और पश्चिम बंगाल सरकार के सुर में सुर मिलाने के बाद अब अख़बारों का जोश भी ठंडा पड़ गया है। बीते दस दिनों में उन्होंने खूब उन्माद फैलाया। लालगढ़ में सैन्य कार्रवाई के समर्थन में जोरदार हवा बनाई। लगा कि उनकी ललकार सुनकर कोबरा फोर्स के जवान एक दिन के भीतर ही सारे माओवादियों का सफाया कर देंगे और लालगढ़ को उनके चंगुल से छुड़ा लेंगे।
19 जून को जब कोबरा फोर्स ने लालगढ़ में प्रवेश किया तो अगले दिन सारे अख़बारों की सुर्खियों में उन्मादी राष्ट्रवाद झलक रहा था। कोबरा फोर्स ने कसा लालगढ़ पर शिकंजा – जैसी सुर्खियों का लब्बोलुबाब यही था कि फोर्स के जवानों की गोलियों से माओवादियों को कोई नहीं बचा सकता। इस कवरेज में एक बात और चिंताजनक थी। लगभग सभी अख़बारों ने माओवादियों को घृणित अपराधी की तरह पेश करते हुए कहा कि उन्होंने महिलाओं और बच्चों को आगे कर दिया है। वो इनका इस्तेमाल ढाल की तरह कर रहे हैं। मतलब अगर कर्ण का वध करना है तो सबसे पहले उसका कवच ..... ((READ MORE))