Wednesday, June 24, 2009

आरटीआई के दायरे में हों मीडिया संस्थान

मीडिया को सूचना अधिकार के दायरे में लाया जाए या नहीं – ये बहस तेज हो रही है। कुछ समय पहले अरुंधति रॉय से बात हुई तो उन्होंने मीडिया को सूचना के अधिकार कानून के दायरे में लाने की बात कही। मीडिया संस्थानों को मिलने वाले पैसे का पूरा हिसाब देने की मांग की। वो पैसा कहां से आता है और कौन देता है? मांग सही है। हर पैसे का अपना चरित्र होता है और यही पैसा मीडिया संस्थानों का चरित्र भी तय करता है। इसलिए इसे आरटीआई के दायरे में लाना चाहिये। वरिष्ठ पत्रकार अनिल चमड़िया भी इसी बहस को आगे बढ़ा रहे हैं। उनका कहना है जिस तरह मीडिया सूचना के अधिकार कानून का इस्तेमाल कर दूसरी संस्थाओं के बारे में जानकारी हासिल करता है ठीक वैसे ही “मीडिया को भी अपने लिए इस कानून के इस्तेमाल की सुविधा मुहैया करानी चाहिये।” दैनिक हिंदुस्तान से साभार ... हम उनका ये लेख आपके सामने पेश कर रहे हैं। आप भी इस बहस में शामिल हों। खुल कर अपनी प्रतिक्रिया दें।

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कोलकाता के जे एन मुखर्जी ने एक समाचार पत्र में एक लेख पढ़कर लेखकी की पृष्ठभूमि के बारे में जानने के लिए पत्र लिखा। उन्हें महीनों तक जवाब नहीं मिला। लेखक के बारे में जानना जरूरी था, क्योंकि स्वास्थ्य संबंधी एक विषय पर उन्होंने जो दावे किये थे वे भ्रामक थे और एक हद तक बेबुनियाद भी थे। जे.एन. मुखर्जी समाचार पत्र के दफ़्तर पहुंच गए। लेकिन उन्हें कई बार की भागदौड़ के बाद भी उस लेखक का न तो पता ठिकाना मिला और न ही उसके बारे में कोई जानकारी।.... ((READ MORE))