Monday, July 13, 2009

हिंदी पत्रकारिता के नाम दो मिनट का मौन

उदयन शर्मा की याद में हुए संवाद में शरद यादव ने अहम मुद्दा उठाया। वो सभा के आखिर में बोले इसलिए उनकी बात आगे नहीं बढ़ सकी। लेकिन उन्होंने जो मुद्दा उठाया, उस पर व्यापक बहस होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि सभा में वो लोग नहीं पहुंचे जो फैसले करते हैं। उन्होंने कहा कि कपिल सिब्बल ही नहीं देश के तमाम हुक्मरान हिंदी अख़बारों को दोयम नज़रिये से देखते हैं और अंग्रेजी अख़बारों को लेकर सम्मोहित हैं। उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी का उदाहरण देकर कहा कि वो जब प्रधानमंत्री थे हर सुबह अंग्रेजी अख़बारों को जितना ध्यान देकर पढ़ते थे और उनकी ख़बरों को जितना अहमियत देते थे, उन्होंने हिंदी अख़बारों को वो अहमियत कभी नहीं दी। ये ऐसे प्रधानमंत्री की बात थी जिन्होंने हमेशा हिंदी भाषी क्षेत्रों से राजनीति की। जो हमेशा हिंदी भाषी क्षेत्रों से चुने गए। जिन्हें हिंदी का बड़ा वक्ता गिना गया और जो खुद को हिंदी का कवि बताते रहे। आखिर क्यों? हिंदी के पत्रकार वो सम्मान हासिल नहीं कर सके जो अंग्रेजी के पत्रकारों को मिला? हिंदी समेत तमाम भारतीय भाषाओं के पत्रकारों की इस स्थिति के लिए जिम्मेदार कौन है? क्या सिर्फ़ सरकार को इसके लिए जिम्मेदार ठहाराया जा सकता है या फिर कहीं न कहीं इसके लिए “हम” खुद भी जिम्मेदार हैं. “हम” मतलब हिंदी समेत भारतीय भाषाओं के तमाम पत्रकार और संपादक।.... ((READ MORE))