Thursday, July 23, 2009

खजुराहो क्‍या हमारे पर्यटन उद्योग का अश्‍लील पैकेज है?

जनतंत्र पर साथी कबीर ने दो दिन पहले एक लेख लिखानवभारत टाइम्स और दैनिक भास्कर की वेबसाइट पर ख़बरों के रूप में अश्लील साहित्य परोसने का आरोप लगाते हुए कबीर ने सविता भाभी की तरह उन पर प्रतिबंध लगाने का मांग की। आजवरिष्ठ पत्रकार अविनाश ने कबीर के लेख का जवाब दिया है। उन्होंने कहा है कि ये मांग बेतुकी है। साइबर स्पेस में हर किसी का अपना कोना है। दूसरे का कोना छेकने का हक़ किसी को नहीं होना चाहिए। कानून को भी नहीं। आप उनका लेख पढ़िए और उतनी ही बेबाकी से अपनी राय रखिए जितनी बेबाकी से अविनाश ने लिखा है।

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मुझे मालूम नहीं कि अश्‍लीलता के संदर्भ में विचारधारा का सवाल कितना पारिभाषित है - लेकिन इतना मालूम है कि ऐसे किसी भी व्‍यवहार पर कानूनी पाबंदी है। इसके बावजूद धड़ल्‍ले से अश्‍लील साहित्‍य प्रकाशित होते हैं और बड़े पैमाने पर बिकते हैं। पचास-साठ के दशक में राजकमल चौधरी ने मैथिली में एक नॉविल लिखा था, पाथर फूल। दरभंगा के एक प्रेस से छप रहा था। किसी कर्मचारी ने ..... (READ MORE)