Sunday, July 26, 2009

टाइम का टाइम ख़राब, इकोनमिस्ट की बढ़ी इनकम

ऐतिहासिक मंदी ने दुनिया भर के मीडिया संस्थानों की हालत ख़राब कर दी है। विस्तार की योजनाएं ठप पड़ी हैं। कई बड़ी कंपनियों पर कर्ज का बोझ बेतहाशा बढ़ गया है। बहुत से अख़बार बंद हो चुके हैं। वेबसाइट भी घाटे में हैं। लेकिन इन सब निराशाजनक ख़बरों के बीच द इकोनमिस्ट ने मुनाफा कमाया है। क्यों और कैसे - ये बता रहे हैं बॉन से ओंकार सिंह जनोटी। ओंकार एक ऐसे उभरते हुए पत्रकार हैं जिनमें असीम ऊर्जा है और व्यापक समझ भी। वो इन दिनों जर्मनी के डॉयचे वेलेको अपनी सेवाएं दे रहे हैं।



डिजिटल एज कहे जाने वाले इस दौर में समाचारों में कमी नहीं है. लेकिन दुनिया भर में मशहूर और दिग्गज मानी जाने वाली टाइम और न्यूज़वीक मैग्ज़ीन की हालत ख़स्ता है. विज्ञापन से होने वाली आय के मामले में बीते साल न्यूज़वीक को 27 फीसदी नुकसान हुआ और टाइम को 14 फीसदी तिजोरी ख़ाली देखनी पड़ी. लेकिन पब्लिशर्स इंफार्मेशन ब्यूरो के मुताबिक़ द इकोनमिस्ट मैग्ज़ीन ने न सिर्फ मंदी को पटख़नी दी, बल्कि आमदनी को भी 25 फीसदी बढ़ाया. अमेरिकी और यूरोपीय मीडिया पर बारीक नज़र रखने वाले द एटलांटिक डाट कॉम के कांट्रिब्यूटिंग एडीटर माइकल हाइशोर्न और एडीटोरियल डायरेक्टर बॉब काह्न कहते हैं कि अब वक्त बदल रहा है.... ((READ MORE))