Thursday, July 16, 2009

"जनसत्ता" और उसकी ये "महान" खोजी पत्रकारिता

जनसत्ता में बुधवार को एक बहुत बड़ी ख़बर छपी। उसका हेडर था "कई गंभीर खामियों से भरी हुई है मेट्रो"। इसमें कहा गया है कि "दिल्ली मेट्रो रेल की निर्माणाधीन लाइनें ही नहीं बल्कि इसकी चालू लाइन भी खतरे से खाली नहीं है। मेट्रो की लाइन नंबर दो की पटरियां (लोहे का ढांचा जिस पर ट्रेन चलती है) में जगह-जगह गड्ढे हो गए हैं जो कभी भी किसी गंभीर घटना को अंजाम दे सकते हैं"। अगर ये ख़बर सही है तो श्रीधरन और मेट्रो पर बहुत बड़ी लापरवाही का मामला बनता है। उनके ख़िलाफ़ बड़े पैमाने पर मुहिम चलाने की ज़रूरत है। मेट्रो के ख़िलाफ़ तुरंत कार्रवाई के लिए दबाव बनाने की ज़रूरत है। उसे एक साथ हज़ारों लोगों की ज़िंदगियों को ख़तरे में डालने की छूट नहीं दी जा सकती। किसी कीमत पर नहीं दी जा सकती। लेकिन लापरवाही तो ये ख़बर देने वाली रिपोर्टर, उसे संपादित करने वाले सब एडिटर और पेज के चीफ सब एडिटर से भी हुई है। इस रिपोर्ट में दो जगह कहा गया है कि "डीएमआरसी प्रशासन शिकायतों के बाद भी इस पर ध्यान नहीं दे रहा।" ये शिकायतें किसने और किससे की हैं... ((READ MORE))