Wednesday, May 13, 2009

ख़बरों के पैकेज का काला धंधा

ख़बरों का सौदा होता है। ये हम ही नहीं, हिंदी के सबसे बड़े पत्रकार प्रभाष जोशी भी कह रहे हैं। 10 मई को “जनसत्ता” में उन्होंने इस डरावने सच को बयां किया। उनके लेख से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि आज प्रेस कितना स्वतंत्र है और कितना बिकाऊ। ये भी अंदाजा लगा सकते हैं कि जिस देश में अख़बार और न्यूज़ चैनल पैसों के लिए ईमान-धर्म बेच चुके हों वहां आम आदमी की आवाज़ सत्ता के गलियारों तक कैसे पहुंचेगी? प्रभाष जी का ये लेख आप भी पढ़िये और लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की मौत पर दो मिनट का मौन रखिये।
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उनका कुछ नाम भी है और काम भी। बरसों से हमारे दोस्त हैं। लेखक और समाजसेवी पिता के कारण बचपन से पत्रकारिता करने लगे। समाज को बदलने और बनाने की तलवार मान कर।........
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