Thursday, May 14, 2009

“पत्रकार दिखे तो गोली मार देना”

((कुछ दिन पहले जनतंत्र पर आपने वरिष्ठ पत्रकार शुभ्रांशु चौधरी जी के लेख का पहला हिस्सा पढ़ा। “सारे पत्रकार दलाल बन गए हैं” में उन्होंने छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता के सच को बयां किया। आज उसी लेख का दूसरा हिस्सा। इसे पढ़ने पर आपको पता चलेगा कि छत्तीसगढ़ में किस तरह ईमानदार पत्रकारों पर जुल्म हो रहा है। जो बिकने और झुकने से इनकार करता है उसे साज़िश के तहत फंसा दिया जाता है।))

द इंडियन एक्सप्रेस ने फ्रंट पेज पर एक ख़बर छापी। नक्सलियों ने तीन किसानों की इसलिए हत्या कर दी कि उन्होंने खेती पर नक्सलियों के प्रतिबंध को मानने से इनकार कर दिया था।
मैंने कभी भी इस तरह के प्रतिबंध की बात नहीं सुनी थी, इसलिए ख़बर पढ़ने के बाद मैंने कुछ फोन किये। मुझे बताया गया कि नक्सलियों ने तीन किसानों की हत्या जरूर की है, लेकिन इस हत्याकांड का खेती से कोई रिश्ता नहीं है। असलियत तो ये है कि चिंतागुफा गांव में धड़ल्ले से खेती हो रही है। चिंतागुफा गांव के पूर्व सरपंच ने बताया कि नक्सलियों ने तीनों किसानों को पुलिस का मुखबिर होने के शक में मार डाला।
अगर, मैं, दिल्ली में होते हुए ख़बर को क्रॉसचेक करने के लिए फोन पर चिंतागुफा के लोगों से बात कर सकता हूं तो रायपुर के पत्रकार ऐसा क्यों नहीं कर सकते?
मैंने, स्थानीय अख़बार में अपने कॉलम में इस वाकये का जिक्र किया। लेकिन किसी ने उस पर गौर नहीं किया। अगले दिन द टाइम्स ऑफ इंडिया ने नक्सली फरमान नहीं मानने के कारण किसानों पर हुए हमले की वही पुरानी ख़बर छाप दी। ....... ((READ MORE))