Monday, May 18, 2009

चौकीदार का चोर होना

((हिंदी के सबसे बड़े और सम्मानित पत्रकार प्रभाष जोशी हाल में संपन्न आम चुनावों के दौरान खबरों की खरीद-फऱोख्त के शर्मनाक धंधे के खिलाफ खम ठोककर मैदान में उतर पड़े हैं। उन्होंने मांग की है कि खबरें बेचकर पत्रकारिता की पवित्रता को दागदार करने वाले अखबारों का रजिस्ट्रेशन रद्द होना चाहिए। अगर ज़रूरी हो तो इसके लिए नया कानून भी बनाया जाना चाहिए। इस विषय पर उनका पिछला लेख “खबरों के पैकेज का काला धंधा” आप यहां पहले पढ़ चुके हैं। जनसत्ता के अपने मशहूर कॉलम “कागद कारे” में इस बार भी प्रभाष जी ने इसी मुद्दे पर कलम उठायी है। पढ़िए और जनतंत्र के चौथे स्तंभ को बचाने की इस मुहिम में उनका साथ दीजिए।))
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चुनाव की खबरों को बेचने का काला धंधा ऐसा नहीं कि अखबारों ने कोई छुपाते और लजाते हुए किया हो। छोटे-मोटे स्ट्रिंगर से लेकर संपादक और मालिक तक और उधर छुटभैये कार्यकर्ता से लेकर उम्मीदवार, उसकी पार्टी और प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार तक सब जानते थे कि अखबारों में चुनाव की खबरें पैसे और वह भी काले पैसे से छप रही हैं। राजनीतिक लोगों की बेशर्मी तो फिर भी समझी जा सकती है, क्योंकि उनमें से अधिकतर अखबारों में छपे को अपना प्रचार मानकर ही चलते हैं। लेकिन अखबारों – खासकर हिंदी और अंग्रेजी के राष्ट्रीय दैनिक, जो अपनी गिनती दुनिया के सबसे बड़े अखबारों में और सबसे ज्यादा पाठकों वाले अखबारों में करवाते हैं और अपनी पत्रकारिता की तारीफ करते खुद ही नहीं थकते – वे भी खबरों की अपनी पवित्र जगह ....... ((READ MORE))