एक्जिट पोल का खेल एक बार फिर से फेल हो गया है। तमाम न्यूज़ चैनल-अखबार और उनके लिए एक्ज़िट पोल की दुकान चलाने वाले दुकानदार, अपने-अपने तुक्के भिड़ाते रहे। “सेफोलॉजिस्ट” उलझाने वाले आंकड़ों को सुलझाने का दंभ पाले मुस्कराते रहे।
नेता और पत्रकार चैनलों के स्टूडियो में बैठकर शब्दों का मायाजाल बुनते रहे। चुनाव के हर मौसम में घास-पात की तरह उग आने वाले राजनीतिक विश्लेषक अजीबोग़रीब दलीलों की जुगाली करते रहे। किसी को जिताते, किसी को हराते रहे। लेकिन जब भारत की आम जनता ने अपना फैसला सुनाया, तो सारे अनुमान और “प्रोजेक्शन” धरे के धरे रह गए। तमाम दलीलें थोथी साबित हो गयीं। भारत के आम मतदाता ने साबित कर दिया कि महानगरों के आरामदेह केबिन में बैठकर बड़ी-बड़ी डींगें मारने वाले इन लोगों को राजनीति की असली ज़मीन पर क्या हो रहा है, इसका कोई अंदाज़ा नहीं है।
ज़्यादातर एक्जिट पोल यूपीए और एनडीए के बीच कांटे की टक्कर होने के दावे कर ..... ((READ MORE))